भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जानती हूँ कि तुमको खोना है / मधुरिमा सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:28, 27 जुलाई 2010 का अवतरण
जानती हूँ कि तुमको खोना है ।
आओ हँस लें कि फिर तो रोना है ।
हमको अपना पता भी याद नहीं,
तेरी आँखों का जादू - टोना है ।
जो हथेली पे था हिना से लिखा,
नाम वो आँसुओं से धोना है ।
हादसे और कितने बाक़ी हैं,
आज हो जाए, कल जो होना है ।
हर तरफ़ प्यार, प्यार, प्यार उगे,
बीज ऐसा दिलों में बोना है ।
मौत और ज़िन्दगी का अर्थ है क्या,
साँस का जागना है, सोना है ।
तू अभी तक बसा है साँसों में,
तुझसे महका ये कोना-कोना है ।