भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बचाव की युक्ति / भारत भूषण अग्रवाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:09, 28 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत भूषण अग्रवाल |संग्रह=उतना वह सूरज है / भारत …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या यह बचाव की युक्ति
यानी आत्म-प्रवंचना ही नहीं है
कि मैं हर बाहरी घटना को अपने मन में ले जाता हूँ
और उसे एक मुन्ना-सा रूप दे देता हूँ
जैसे जापानी लोग, सुना है, अपने ड्राइंग-रूम में नदी और पहाड़ बना लेते हैं
यानी यह जो बंगला देश की विभीषिका है
इससे उद्वेलित होकर
हफ़्ते भर तक बेचैन रहा
और फिर अंत में मैंने सिर्फ़ एक सिगरेट कम कर दी ।