भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विभाजन / भारत भूषण अग्रवाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:11, 28 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत भूषण अग्रवाल |संग्रह=उतना वह सूरज है / भारत …)
तुमने सारे ठाठ इस आधार पर बनाए थे
कि एक की विजय
और दूसरे की पराजय होगी
तुमने दुनिया के लोगों को
या तो शत्रु समझा
या फिर मित्र
यानी तुम दो की सत्ता में विश्वास करते रहे
यह भूलकर
कि यह विभाजन दुनिया का नहीं
तुम्हारे मन का अपना है--।