भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गर दिल में जज़्बात नहीं / मनोज मनु
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:08, 29 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज मनु }} {{KKCatGhazal}} <poem> गर दिल में जज़्बात नहीं तो फ…)
गर दिल में जज़्बात नहीं
तो फिर कोई बात नहीं
यूँ शतरंज़ी चाल न चल
प्यार में शह और मात नहीं
प्यार के बदले प्यार मिले
हक़ चाहा ख़ैरात नहीं
हमको छूकर मत देखो
सूरज हैं ज़र्रात नहीं
वो वापस आयेगा ही
वो भी पत्थर ज़ात नहीं