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गुलमोहर के नीचे / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

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कितनी दफ़ा मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
यादों कर सिलसिले हैं इस गुलमोहर के नीचे

ये है हमारे प्यार का इकलौता राज़दार
क्या-क्या न गुल खिले हैं इस गुलमोहर के नीचे

पत्तों की पायजेब गुलों की मोहर गले
गहने गज़ब मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे

पूरब से हम चले थे पच्छिम से आए तुम
दो दिल यहाँ मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे

कैसे बुने थे हमने सपने बड़े बड़े
वे स्वप्न के किले हैं इस गुलमोहर के नीचे

पल में तुम्हारा रूठना और मेरा मनाना
नखरे हैं, चोचले हैं, इस गुलमोहर के नीचे

अब भी अधूरे हैं जो किए थे कभी यहीं
वायदों के काफ़िले हैं इस गुलमोहर के नीचे

अनचाहे वाकये भी यहाँ हैं दबे पड़े
शिकवे हैं कुछ गिले हैं इस गुलमोहर के नीचे