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जब छुट्टी पर घर जाऊंगा / मनोज श्रीवास्तव

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जब छुट्टी पर घर जाऊंगा

सहेज कर
सम्हाल कर
रोटी की तरह बेलकर
तवे पर सेंककर
अलाव में फुलाकर
मैंने तैयार किया है
अपने लिए
समय का एक टुकड़ा,
आड़े वक़्त काम आने के लिए
चुराए हैं मैंने
कुछ घंटे, कुछ दिन, कुछ सप्ताह
खर्च करने के लिए
गिन-गिन,
जब जाऊंगा घर
छुट्टी पर
स्वर्गस्थ माँ के
बच्चों से मिलने
उन्हें तसली देने
कि अभी तुम्हारा सूरज
चंद काले बादल चीरकर
चौंधियाती किरणें बिखेरेगा,
मैं उन्हें
कुपोषणजन्य रोगों से
अंतहीन जंग लड़ने
के असंख्य गुर बताऊंगा,
मुफ्त प्राकृतिक चिकित्सा के
तिलस्मी असर बखानूंगा
और कहूँगा कि
तड़के भिंगोकर
फुलाए चने चबाकर
तुम सभी
सरपटगामी घोड़े बन जाओगे
और यह कि
खबरदार!
फीकी डाल, उसना चावल
ग्रास्य बनाने के लिए
ज़्यादा मसाले की सेवन कर
तुम्हारे बाल
कैशोर्य में ही पाक जाएंगे,
बदहज़मी होगी
और डांट झड़ जाएंगे,
कोई असाध्य उदर रोग हो जाएगा
पीलिया हो जाएगा

तब मैं
उन्हें हरी सब्जियों की
गोभी के पत्तों की
पालक की जड़ों की
गुणकारिता बयाँ करूंगा,
अपनी बड़ी होती बहनों से
परिवार की प्रतिष्ठा का वास्ता देकर
बारम्बार कहूंगा कि वे
अपने राजकुमारों के
सपनीली दुनिया से आने तक
अपना आकर्षण बरकरार रखें.