भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भूल / अजित कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:46, 2 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=घोंघे / अजित कुमार }} {{KKCatKavita}} <poem> …)
घोंघा बस अड़ गया ।
चाहे कहें- ’लड़ गया’
चाहे- ’जकड़ गया ।’
बात सिर्फ़ इतनी थी कि
जीवन का सीधा-सा नियम :
’चलो, चलते ही रहो ।’-
भूल,
घोंघा जब पड़ गया :
होना यही था-
वह सड़ गया