भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहाड़ और पहाड़ / अजित कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:10, 2 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=घोंघे / अजित कुमार }} {{KKCatKavita}} <poem> …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नदियाँ बहाकर ले गई थीं
पहाड़ और धरती का
जो चूना रसायन और नमक
समुद्र में,
कीड़ों ने खाया उन्हें,
पचाया उन्हें
और उत्पादन शुरू किया
नमक, रसायन और चूने का
अपने ही तन से ।

क्या पता
यह प्रकृति का एक और सन्तुलन हो
कि उधर गलते रहें पहाड़
खड़े धरती के शीश पर...

इधर चलते रहें पहाड़
टिके घोंघों की पीठ पर ।