भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यार में उनसे करूँ शिकायत / हस्तीमल 'हस्ती'

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:05, 3 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती' }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> प्यार में उनसे करूँ …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्यार में उनसे करूँ शिकायत, ये कैसे हो सकता है
तोड़ दूँ मैं आदाबे-मुहब्बत, ये कैसे हो सकता है

चन्द किताबें तो कहतीं हैं, कहतीं रहें, कहने से क्या
इश्क़ न हो इंसाँ की ज़रूरत, ये कैसे हो सकता है

फूल न महकें, भँवरें न बहकें, गीत न गाये कोयलिया
और बच्चे ना करें शरारत, ये कैसे हो सकता है

जन्नत का अरमान अगर है, मौत से कर ले याराना
जीते जी मिल जाए जन्नत, ये कैसे हो सकता है

कोई मुहब्बत से है खाली कोई सोने-चाँदी से
हर झोली में हो हर दौलत, ये कैसे हो सकता है

अपनी लगन में, अपनी वफ़ा में कोई कमी होगी ‘हस्ती‘
वरना रंग न लाए चाहत, ये कैसे हो सकता है!