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आये दिन बहार के / नागार्जुन
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रचनाकार: नागार्जुन
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'स्वेत-स्याम-रतनार' अंखिया निहार के
सिण्डकेटी प्रभुओं की पग-धूर झार के
लौटे हैं दिल्ली से कल टिकट मार के
खिले हैं दांत ज्यों दाने अनार के
आये दिन बहार के !
बन गया निजी काम-
दिलाएंगे और अन्न दान के, उधार के
टल गये संकट यू.पी.-बिहार के
लौटे टिकट मार के
आये दिन बहार के !
सपने दिखे कार के
गगन-विहार के
सीखेंगे नखरे, समुन्दर-पार के
लौटे टिकट मार के
आये दिन बहार के !
१९६६ में लिखी गई