भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चिराग नहीं जलते / अशोक लव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:10, 4 अगस्त 2010 का अवतरण
हुए हस्ताक्षर
मिलाए नेताओं ने हाथ
विभाजित हो गया काग़ज़़ के टुकड़े पर
इतना बड़ा देश
लोगों से पूछा तक नहीं गया ।
विभाजित हो गए लोग
बँट गए गली-मोहल्ले, गावँ-शहर, घर-आँगन !
मर गए रिश्ते
मर गई इंसानियत
जी भरकर भोगा कामांध दरिंदों ने लड़कियों-औरतों को
तलवारों के वार से करते गए
सिर धड़ से अलग
फूँक डाले मोहल्ले के मोहल्ले
हो गए भस्म हिंसा की आग में
खानदान के खानदान ।
इस पार के
और उस पार के
राजनेताओं के हुए राज्याभिषेक
जगमगाए उनके भवनों पर रंग-बिरंगे बल्ब
नहीं जल पाए चिराग आज तक
उन घरों में
बुझ गए थे जो सन सैंतालीस में ।