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कहाँ तिशनगी के नजारें मिलेंगे / राजीव भरोल

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कहाँ तिशनगी के नजारें मिलेंगे,
नदी के किनारे किनारे मिलेंगे.

नहीं खाएंगे लाठियां सच की खातिर,
फकत खोखले तुमको नारे मिलेंगे.

समंदर के जैसा हुआ शहर अपना,
यहाँ लोग भी तुमको खारे मिलेंगे.

सफर, मंजिलें सब नए मिल भी जाएँ,
कहाँ हमसफर इतने प्यारे मिलेंगे.

दिलों पर पड़ी गर्द जब भी हटेगी,
यहाँ नाम लिक्खे हमारे मिलेंगे.

ये तिनके ही हैं जो निभाएंगे तुमसे,
इन्हीं के तुम्हें कल सहारे मिलेंगे.

कभी रात छत पर बिता कर तो देखो,
कई टूटते तुमको तारे मिलेंगे.