रही अछूती / हरीश भादानी
रही अछूती
सभी मटकियाँ
मन के कुशल कुम्हार की
रही अछूती....
साधों की रसमस माटी
फेरी साँसों के चाक पर,
क्वांरा रूप उभार दिया
सतरंगी सपने आँककर
हाट सजाई
आहट सुनने
कंगनिया झन्कार की
रही अछूती
सभी मटकियाँ
मन के कुशल कुम्हार की
रही अछूती....
अलसाई ऊषा छूदे
मुस्का मूंगाये छोर से,
मेहँदी के संकेत लिखे
संध्या पाँखुरिया पोर से
चौराहे रख दी
बंधने को
बाँहों में पनिहार की
रही अछूती
सभी मटकियाँ
मन के कुशल कुम्हार की
रही अछूती....
हठी चितेरा प्यासा ही
बैठा है धुन के गाँव में,
भरी उमर की बाजी पर
विश्वास लगे हैं दाँव में
हार इसी आँगन
पंचोली
साधे राग मल्हार की
रही अछूती
सभी मटकियाँ
मन के कुशल कुम्हार की
रही अछूती...