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थाली भर धूप लिए / हरीश भादानी
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थाली भर धूप लिए
बैठी अहीरन!
सिरहाने लोरी सुन
सोये पल जाग गए,
अँजुरी भर दूध पिया
बिन बोले भाग गए
उड़ी-उड़ी फूलों की गंध
बाँधन में मगन!
थाली भर धूप लिए.....
छाँहों की छोड़ गली
सड़कों-चौराहों को,
खेतों में हिलक रही
बालों की बाँहों को
गूँज-गूँज डोरी से
बाँधने की लगन!
थाली भर धूप लिए.....
साथ देख रीझे है
साँझ-सी सहेली,
चाहों से भर दी है
रात की हथेली
आंज लिए आँखों में
उजले सगुन !
थाली भर धूप लिए
बैठी अहीरन !