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28/ हरीश भादानी
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हम जो
सड़े हुए आयामों को
गहरी खाई में गाड़
गज़ार बनाने को आतुर हैं,
उन-हम सब पर
पहरेदार-समय का
पहरा लगा रहा है, कि-
हमलोंगों की साँस-साँस में
कड़वाहट घुल जाये,
हम भारी पांव चलें, बहकें,
कुछ दूर चलें, गिर जायें,
लेकिन हम-जो
नंगे बदन
कुदाल-कढ़ाई लिये खड़े हैं,
आओ, पहरेदार समय की
हमलोगों से
अनमेली पोशाक छीन लें
साथ हमारे
चलने की तहज़ीव सिखादें !