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ये आंखें/ राजेश चड्ढा
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देखते ही
किसी तरफ़
एक रिश्ता कायम कर
उसे
सदियों पुराना
साथी बना लेती थीं
पर आज
यकायक
देख कर
किसी को
शायद...!
ये ना जाने कौन है...?
विचार कर
खुद-ब-खुद
चुरा ली जाती हैं
कभी-कभी सोचता हूं
किसी की तरफ़
उठ कर
रुक क्यों नहीं जाती...!
पत्थरा क्यों नहीं जाती...!
ये आंखें......