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तनहाइयाँ-1 / शाहिद अख़्तर
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कहीं से अब भी आती है एक सदा
कहीं गूँजता है एक नग़मा
कहीं सुलगती है कोई आह
कहीं कोई लेता है मेरा नाम
यादों की दूर वादियों में
किसे मैं भूल आया
कोई बताए मुझे
क्योंकर अज़ीज़ है मुझे
मेरा ग़म, मेरी तनहाइयाँ