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नीले एकान्त में / अमृता भारती

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वह मेरा
हर पड़ाव उठा लेता था
और मैं- मानों
सिर्फ़ यात्रा रह गई थी-
एक संचरण ।

तब
एक दिन ऐसा हुआ
पैरों के नीचे से
ज़मीन ही नहीं
मैं हट गई थी ।

धरती से ऊपर
चलते हुए
मैंने नहीं जाना था
कि मैं
उसके
आकाश के अन्दर हूँ
और वह
मुझे
रेखांकित कर रहा है
अपने नीले एकान्त में ।

मैंने नहीं जाना था
कि मैं
उसकी
सांध्य
प्रार्थना के अन्दर हूँ ।