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हवसकारों की बस्ती का हर इक मंजर निराला है / रोशन लाल 'रौशन'

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हवसकारों की बस्ती का हर इक मंजर निराला है
उजालों में अँधेरा है अँधेरों में उजाला है

यहाँ चढ़ते हुए सूरज की पूजा लोग करते हैं
यहाँ गिरते हुए को दोस्तो किसने संभाला है

कोई लम्हा, कोई साया मसर्रत का न रास आया
गमों ने दोस्तो मुझको बड़ा नाजों में पाला है

सुखन सद राज है अपना अलग अन्दाज है अपना
मुझे इस ”जिन्दगी ने और ही सांचे में ढाला है

तुम्हारी अंजुमन से जो सलामत लौट कर आये
जमाने में कोई ऐसा कहां तकदीर वाला है