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कोई बुश है कोई ओबामा है / रोशन लाल 'रौशन'

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कोई बुश है कोई ओबामा है
किसने गिरते धुओं को थामा है

आदमी खुद को आदमी न कहे
मुफलिसी वो करारनामा है

कृष्ण कोई नजर नहीं आता
जिसको देखो वही सुदामा है

जिसका कालर है जेब के नीचे
”जिन्दगी एक ऐसा जामा है

उनके कदमों में ऐटमी हथियार
मेरे हाथों में मेरा खामा है

कुफ्रो-ईमां में कोई फर्क नहीं
ये मुहब्बत का कारनामा है

ये किसी क़त्ल की रिपोर्ट नहीं
आदमीयत का पंचनामा है

भूख उस घर की देन है ‘रौशन’
वक्त जिस घर में खानसामा है