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सहमते स्वर-5 / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

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मैं राजदरबार से
चला आया
अपनी ही नज़रों में
गिरने से बच गया।

नए माहौल में
भटकना भला लगता है
सुविधा का भरण क्षण तो
सड़ा-गला लगता है

उनकी क्या करता
हाँ-हज़ूरी
जो ख़ुद मोहताज हैं