भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ामोशी के ख़िलाफ़ / शाहिद अख़्तर

Kavita Kosh से
Shahid (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:46, 25 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: '''खोमोशी के खिलाफ''' दर्द हो तो मदावा भी होगा हमारी खामोशी जुर्म हो…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खोमोशी के खिलाफ

दर्द हो तो मदावा भी होगा हमारी खामोशी जुर्म होगी अपने खिलाफ और हम भुगत रहे हैं इसकी ही सजा लब खोलो कुछ बोलो कोई नारा, कोई सदा उछालो जुल्‍मत की इस रात में आवाजों के बम और बारूद ढह जाएंगे इन से जालिमों के किले (14.01.09: गाजा पर इस्राइली हमले के खिलाफ लिखी कविता) --Shahid 06:16, 25 अगस्त 2010 (UTC)