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मैं तुझसे प्रीत लगा बैठा / उदयभानु ‘हंस’

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तू चाहे चंचलता कह ले,
तू चाहे दुर्बलता कह ले,
दिल ने ज्यों ही मजबूर किया, मैं तुझसे प्रीत लगा बैठा।

यह प्यार दिए का तेल नहीं,
दो चार घड़ी का खेल नहीं,
यह तो कृपाण की धारा है,
कोई गुड़ियों का खेल नहीं।
तू चाहे नादानी कह ले,
तू चाहे मनमानी कह ले,
मैंने जो भी रेखा खींची, तेरी तस्वीर बना बैठा।

मैं चातक हूँ तू बादल है,
मैं लोचन हूँ तू काजल है,
मैं आँसू हूँ तू आँचल है,
मैं प्यासा तू गंगाजल है।
तू चाहे दीवाना कह ले,
या अल्हड़ मस्ताना कह ले,
जिसने मेरा परिचय पूछा, मैं तेरा नाम बता बैठा।