सीधी है भाषा बसन्त की
कभी आंख ने समझी
कभी कान ने पायी
कभी रोम-रोम से
प्राणों में भर आयी
और है कहानी दिगन्त की
नीले आकाश में
नयी ज्योति छा गयी
कब से प्रतीक्षा थी
वही बात आ गयी
एक लहर फैली अनन्त की ।
सीधी है भाषा बसन्त की
कभी आंख ने समझी
कभी कान ने पायी
कभी रोम-रोम से
प्राणों में भर आयी
और है कहानी दिगन्त की
नीले आकाश में
नयी ज्योति छा गयी
कब से प्रतीक्षा थी
वही बात आ गयी
एक लहर फैली अनन्त की ।