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मछलियाँ / दिनेश सिंह
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ताल से डरती मछलियाँ
जाल से डरती नहीं हैं
तडफड़ाती यों-
मछेरे लोच पर कुर्बान जाएँ
मुटि्ठयों में फिसलतीं
उद्दाम बलखाती अदाएँ
स्वाद उनका जान लें सब
साँस भी भरती नहीं है
उछलकर गहराइयों से
कश्तियों पर आ गिरी जो
मौत के आगोश में खुश हैं
सनक तक सिरफिरी जो
जहन्नुम के बगीचे में
घास भी चरती नहीं है
खंड-खंड कड़ाहियों में
यहाँ जाएँ-वहाँ जाएँ
खदबदाती, उबलती हैं
सुर्खरू होकर शिराएँ
शोरबे की 'प्लेट' में हैं
तनिक उफ़्फ़ करती नहीं हैं