भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समय / रामकृष्‍ण पांडेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:37, 29 अगस्त 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आगे ही आगे
भाग रहा है समय
और मैं उसे पकड़ने के लिए
भागता जा रहा हूँ उसके पीछे
गुज़र गए
न जाने कितने नदी, जंगल, पहाड़
न जाने कितने पड़ाव छूट गए राह में
दौड़ लगी है समय से मेरी
थकूँगा नहीं मैं
रुकूँगा नहीं मैं
लाँघता ही जाऊँगा सारी बाधाएँ
अनवरत अविश्राम
भाग रहा है समय
आगे ही आगे
और मैं उसे पकड़ने के लिए
भागता जा रहा हूँ उसके पीछे