भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
और एक इम्तिहान बाकी है / संकल्प शर्मा
Kavita Kosh से
Aadil rasheed (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:10, 30 अगस्त 2010 का अवतरण
और इक इम्तिहान बाक़ी है,
इसलिए थोडी जान बाक़ी है।
सर से हर बोझ हट गया मेरे,
सिर्फ़ इक आसमान बाक़ी है।
मैं खतावार हूँ तिरा लेकिन,
तेरे दिल का बयान बाक़ी है।
मेरे हाथों में अब लकीरें नहीं,
तेरे लब का निशान बाक़ी है।
न रहा मैं तो कोई ग़म कैसा,
अब भी तो ये जहान बाक़ी है।
ज़ख्म तो कब के भर गये संकल्प,
ज़ख्म की दास्तान बाक़ी है।