भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कलरव / सौमित्र सक्सेना
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:41, 31 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सौमित्र सक्सेना |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> पेड़ों के झ…)
पेड़ों के झुरमुट में
शाम घिर आई है
अभी फिर
कलरव होगा आज ।
थकी हुई चिड़ियाँ
मज़दूरों की औरतों की तरह
ख़ूब गीत गाती हैं-
ऐसे ही जैसे
मज़दूरों की औरतें
शोर करती हैं
हर शाम
चिड़ियों-सा ।