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आमन्त्रण / रमेश कौशिक

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एक दिन क्षणों के आवेश में
तुमने मुझे आमन्त्रण दिया
किन्तु मेरे अहं ने
अपना समर्पण स्वीकार न किया

आज जब मेरा अहं
तिरोहित है
मैं समर्पण को
तत्पर हूँ
आतुर हूँ
किन्तु तुममें
अब वह
आवेश का क्षण कहाँ
जो मुझे
आमन्त्रण दे सके
अंगीकार कर सके