भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अकथनीय / रमेश कौशिक
Kavita Kosh से
Kaushik mukesh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:54, 1 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश कौशिक |संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक }} <poem> कब …)
कब किसी बाज ने
कबूतर को छोड़ा है
जिसके भी
हाथ लगी
सपनों की गर्दन को
उसी ने मरोड़ा है
किन्तु जो कुछ भी किया
ईश्वर, धर्म, देश
समाजवाद या
अंतरात्मा के नाम पर
और
जो किया
अपने नाम पर
उसे बताने में शर्म
आ......ती है