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तेरे सांचे मे ढल नहीं सकता / आदिल रशीद

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मुहावरा ग़ज़ल
गिर के उठ कर जो चल नहीं सकता
वो कभी भी संभल नहीं सकता

तेरे सांचे में ढल नहीं सकता
इसलिए साथ चल नहीं सकता

आप रिश्ता रखें, रखें न रखें
मैं तो रिश्ता बदल नहीं सकता

वो भी भागेगा गन्दगी की तरफ
मैं भी फितरत बदल नहीं सकता

आप भावुक हैं आप पागल हैं
वो है पत्थर पिघल नहीं सकता

इस पे मंजिल मिले , मिले न मिले
अब मैं रस्ता बदल नहीं सकता

तुम ने चालाक कर दिया मुझको
अब कोई वार चल नहीं सकता

इस कहावत को अब बदल डालो
खोटा सिक्का तो चल नहीं सकता

शब्दार्थ
<references/>