भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहला दिन मेरे आषाढ़ का / नईम
Kavita Kosh से
Hemendrakumarrai (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:54, 3 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> पह…)
{{KKRachna |रचनाकार=नईम
पहला दिन मेरे आषाढ़ का
सूखे का हुआ कभी
कभी हुआ बाढ़ का
पहला दिन मेरे आषाढ़ का
नीले आकाश धूल-धुएँ भरे,
दिरकी छाती, रोए घाव हरे;
टूटे या लगे रहे
कहकर भी नहीं कहे-
पीला पत्ता जैसे झाड़ का
बूँदाबाँदी का क्षण उमस भरा,
सूनी माँगें, विधवा वसुंधरा;
एकाकी भरमाता,
छाया से कतराता-
मरुथल में गाछ एक ताड़ का;
पाटों का पता नहीं डूब गए,
घाटों का पता नहीं ऊब गए,
क्या होगा तन का,
इस मटमैले मन का-
क्या होगा विष दुखती दाढ़ का
पहला दिन मेरे आषाढ़ का?