क्या हो गया कबीरों को
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रचनाकार | शेरजंग गर्ग |
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प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
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ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- ग़लत समय में सही बयानी / शेरजंग गर्ग
- खुद से रूठे हैं हम लोग / शेरजंग गर्ग
- आदमी हर तरह लाचार है / शेरजंग गर्ग
- सतह के समर्थक समझदार निकले / शेरजंग गर्ग
- आदमी की अज़ीब सी हालत है / शेरजंग गर्ग
- हौंसलों में फ़कत उतार सही / शेरजंग गर्ग
- आवाज़ आ रही है / शेरजंग गर्ग
- मत पुछिए क्यों / शेरजंग गर्ग
- कोई शहर गुमशुदा है / शेरजंग गर्ग
- कफ़ी नहीं तुम्हारा / शेरजंग गर्ग
- दर्द की चाशनी है / शेरजंग गर्ग
- मेरे समाज की हालत / शेरजंग गर्ग
- स्वच्छ, सजग अधिकार कहाँ / शेरजंग गर्ग
- सब करार को तरसे / शेरजंग गर्ग
- काँच निर्मित घरों के / शेरजंग गर्ग
- ऐसी हालत मे क्या किया जाए / शेरजंग गर्ग
- हम क्यों न सबको ठीक तरज़ू पे तोलते / शेरजंग गर्ग