Last modified on 7 सितम्बर 2010, at 17:08

भीतर का दीया-दो / मुकेश मानस

Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:08, 7 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मान…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)



उजियारे की खोज में हम
कितने अंधियारों से गुजरे
उजियारे की ख़ातिर हमने
जाने कितने दीप जलाये

पर रात कहीं ना ख़त्म हुई
भोर का तारा नहीं खिला
जितना खोजा उजियारे को
उतना ही वो नहीं मिला

सारी गहन निराशाओं के
बाद ये हमने जाना
अपने भीतर एक दिया था
भूल गये थे उसे जलाना
2008