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मैं सोचता हूँ / नरेश अग्रवाल

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मैं सोचता हूँ सभी का समय कीमती रहा
सभी का अपना-अपना महत्व था
और सभी में अच्छी संभावनाएँ थीं ।
थोड़ी-सी रेत से भी भवनों का निर्माण हो जाता है
और सागर का सारा पानी दरअसल बूंद ही तो है ।

रास्ते के इन पत्थरों को
मैंने कभी ठुकराया नहीं था
इन्हें नहीं समझ पाने के कारण
इनसे ठोकर खाई थी

और वे बड़े-बड़े आलीशन महल
अपने ढहते स्वरूप में भी
आधुनिकता को चुनौती दे रहे हैं
और उनका ऐतिहासिक स्वरूप आज भी ज़िंदा है ।