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पिछड़ गया था मैं ही साथी / गोबिन्द प्रसाद

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पिछड़ गया था मैं ही साथी
छोड़ राह में तुम्हें अकेला
सोच-सोच दूना होता है
मन का दुख यह आज सहेला