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ध्यान की छाया / गोबिन्द प्रसाद

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मैंने कहा : बैठ जाओ
इस पत्थर पर
वह बैठ गयी,चुपचाप

उसने कहा : तुम यहाँ बैठो
मेरे ध्यान की छाया में
घास पर
-मैं खड़ा रहा देर तक
चुपचाप