भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सम्बन्ध / महेंद्रसिंह जाडेजा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:53, 13 सितम्बर 2010 का अवतरण
सड़े हुए
मरे हुए
मरी हुई गंधाती मछलियों जैसे
मकड़ी के जाले जैसे
मगर की चमड़ी जैसे
सड़े हुए
फोड़े पर जमी पपड़ी जैसे
सूखे हुए
पीड़ित होते
बिलखते
तड़पते
अंधी दीवार
बिना स्पर्श के
बिना गंध के
बिना रूप के
बिना रंग के
खाली खटार
कटे हुए
टूटे हुए
भग्न हुए
बिना जड़ के
उखड़े हुए
मरे हुए
ज़ंग लगे
ठिठुरे हुए
छेद वाले
दीवार जैसे
खंडहर जैसे
स्वादहीन
बिना संवेदना के
बिना लगाव के
पत्थर जैसे
संबंध ।
परिचय की छेनी
अब कोई शिल्प नहीं रच सकती ।
मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : क्रान्ति