वह आया / सोहनलाल द्विवेदी
मन में नूतन बल सँवारता
जीवन के संशय भय हरता,
वंदनीय बापू वह आया
कोटि कोटि चरणों को धरता;
धरणी मग होता है डगमग
जब चलता यह धीर तपस्वी,
गगन मगन होकर गाता है
गाता जो भी राग मनस्वी;
पग पर पग धर-धर चलते हैं
कोटि कोटि योधा सेनानी,
विनत माथ, उन्नत मस्तक ले,
कर निःशस्त्र आत्म-अभिमानी!
युग-युग का घनतम फटता है
नव प्रकाश प्राणों में भरता,
वंदनीय बापू वह आया
कोटि कोटि चरणों को धरता;
निद्रित भारत, जगा आज है
यह किसका पावन प्रभाव है?
किसके करुणांचल के नीचे
निर्भयता का बढ़ा भाव है?
नवचेतन की श्वास ले रहे
हम भी आज जी उठे जग में,
उठा लगाया हृदय-कंठ से
किसने पददलितों को मग में?
व्यथित राष्ट्र पर आँचल करता
जीवन के नव-रस-कन ढरता,
वंदनीय बापू वह आया
कोटि कोटि चरणों को धरता!
यह किसका उज्ज्वल प्रकाश है
नवजीवन जन जन में छाया,