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हकी़क़ते-हुस्न / इक़बाल
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:41, 16 सितम्बर 2010 का अवतरण
ख़ुदा से हुस्न ने इक रोज़ ये सवाल किया
जहाँ में क्यों ना मुझे तुने लाज़वाल किया।
मिला जवाब के तस्वीरख़ाना है दुनिया
शबे-दराज़ अदम का फसाना है दुनिया।
है रंगे-तगय्युर से जब नमूद इसकी
वही हसीन है हक़ीकत ज़वाल है इसकी।
कहीं क़रीब था, ये गुफ्तगू क़मर ने सुनी
फ़लक पे आम हुवी, अख्तरे-सहर ने सुनी।
सहर ने तारे से सुनकर सुनायी शबनम को
फ़लक की बात बता दी ज़मीं के महरम को।
भर आये फूलके आँसू पयामे-शबनम से
कली का नन्हा-सा दिल खून हो गया ग़म से।
चमन से रोता हुवा मौसमे-बहार गया
शबाब सैर को आया था सोग़वार गया।