भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अक्षम हूं मैं / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:59, 23 मई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} रचनाकार: केदारनाथ अग्रवाल Category:कविताएँ Category:केदारनाथ अग्रवाल ~*~*~...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: केदारनाथ अग्रवाल

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


आतंकित करता है मुझे मेरा सम्मान ।

इसी वक्त तो परास्त करती हैं मुझे

                     मेरी कमजोरियां ।

कांपता हूं मैं, यश की विभूति से विभूषित,

रक्त-चंदन का टीका भाल पर लगाए,

पुष्पमाल के रूप में

                  सर्पमाल को लटकाए ।

अक्षम हूं मैं असमर्थताओं का पुतला,

गौरव-गुन-हीन, अबलीन, धुंधला,

काल-पीड़ित कविता में

                    बहुत-बहुत  दुबला ।

रहने दो बंधु !

      मुझे  रहने  दो  अवहेलित,

जीने दो जीवन को तापित औ' परितापित,

निष्कलंक रह लूंगा

              चाहे  रहूं  अवमानित  ।


('पंख और पतवार' नामक कविता-संग्रह से )