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तुम / केदारनाथ अग्रवाल
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तुम हो
-दिन में-
सूर्यमुखी नदी की
नटखट देह,
खुशमिज़ाज धूप ।
तुम हो
-रात में-
गुलाब-फूलों की नाव,
चांदनी के चुंबनों की
कलहंसी देह,
बाहों में बिछलती--
नाचती,
स्वप्न-मयूरी तरंग ।
('पंख और पतवार' नामक कविता-संग्रह से)