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टिटिहरी / केदारनाथ अग्रवाल
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आसमान में उड़ी
टिटिहरी,
और उड़ते-उड़ते
बोलते-बोलते बोल,
दृष्टि से पार निकल गई
जैसे
कोई कटार
हृदय के पार निकल गई ।
('पंख और पतवार' नामक कविता-संग्रह से)