भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आप उन्ही का दम भरते हैं/ सर्वत एम जमाल

Kavita Kosh से
Alka sarwat mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:13, 22 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=सर्वत एम जमाल संग्रह= …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

                  रचनाकार=सर्वत एम जमाल  
                  संग्रह=
                  }}
                  साँचा:KKCatGazal

आप उन्हीं का दम भरते हैं
जो उखड़े उखड़े रहते हैं
 
खौफ तपिश का हमको कैसा
रोज ही शोलों पर चलते हैं

धूप ने कैसी आग लगाई
गाँव ,नगर ,पनघट जलते हैं

क्या देखा है इन बच्चों ने
क्यों सहमें सहमें लगते हैं

पेड़ को मौत नहीं आती है
पत्ते रोज गिरा करते हैं

आप अलग बैठे दुनिया से
लेकिन कितने दिन बचते हैं

सर्वत जीवन फिर जीवन है
दुःख-सुख हम भी तो सहते हैं