भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आस्तीन क्या जेब में रहिए/ सर्वत एम जमाल
Kavita Kosh से
Alka sarwat mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:23, 22 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {KKGlobal}}{ {{KKRachna}} रचनाकार=सर्वत एम जमाल संग्रह= …)
{KKGlobal}}{
रचनाकार=सर्वत एम जमाल संग्रह= }} साँचा:KKCatGazal
आस्तीन क्या जेब में रहिये
दूर से ज़हर यूं मत उगलिए
आप नसीमे सहर नहीं हैं
आंधी हैं तो तेज ही चलिए
यहीं दफीने हैं जीवन के
मिट्टी थोड़ी और पलटिये
कौन सी बात थी तूफानों में
सहम गए हैं वक्त के पहिये
राह अभी हमवार नहीं है
पाँव जमीं पर देख के रखिये
तुझ पर भारी अपने गहने
हम पर अपने दाल और दलिये
सब मंजिल की फिक्र में गुम हैं
आपका क्या है बैठे रहिये
सर्वत अब अपने शेरों में
थोड़ी सी रंगीनी भरिये
_________________________________