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तुम नहीं तो... / वर्षा सिंह

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ओह, मन का भ्रम
ये शायद
आग भी पानी लगे
तुम नही तो प्यास की
चर्चा भी बेमानी लगे ।

बात कुछ ऐसी कि
लगती ज़िन्दगी
ठण्डी बर्फ़-सी
भीड़ में खोए हुए अपनत्व-सी

कौन जाने क्या हुआ
हर चीज़ बेगानी लगे ।

सूर्य को मुट्ठी में
भर कर
चूमने की चाह में
होंठ अक्सर
जल गए हैं आह रूपी दाह में

नेह की परछाईं भी
अब तो अनजानी लगे ।