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त्रिवेणी 2 / गुलज़ार

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सब पे आती है सब की बारीसे
मौत मुंसिफ़ है कम-ओं-बेश नहीं

ज़िन्दगी सब पे क्यूँ नहीं आती


कौन खायेगा किसका हिस्सा है
दाने-दाने पे नाम लिखा है

'सेठ सूद्चंद मूलचंद आक़ा'


उफ़! ये भीगा हुआ अख़बार
पेपर वाले को कल से चेंग करो

'पांच सौ गाँव बह बह गए इस साल'