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घुटन / गुलज़ार
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:38, 23 सितम्बर 2010 का अवतरण
जी में आता है कि इस कान में सुराख़ करूँ
खींचकर दूसरी जानिब से निकालूँ उसको
सारी की सारी निचोडूँ ये रगें साफ़ करूँ
भर दूँ रेशम की जलाई हुई भुक्की इसमें
कह्कहाती हुई भीड़ में शामिल होकर
मैं भी एक बार हँसूँ, खूब हँसूँ, खूब हँसू