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थरथराता रहा / शमशेर बहादुर सिंह
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{एक विचित्र प्रेम अनुभूति}
थरथराता रहा जैसे बेंत
मेरा काय...कितनी देर तक
आपादमस्तक
एक पीपल-पात मैं थरथर ।
कांपती काया शिराओं-भरी
झन-झन
देर तक बजती रही
और समस्त वातावरण
मानो झंझावात
ऎसा क्षण वह आपात
स्थिति का
('प्रतिनिधि कविताएं' नामक संग्रह से)