भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आख़िर ! कब तक / पूनम तुषामड़

Kavita Kosh से
Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:20, 24 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूनम तुषामड़ |संग्रह=माँ मुझे मत दो / पूनम तुषाम…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आखिर किस-किस बात की
दोगे तुम सज़ा मुझे
और कब तक...?
धातु के बर्तन इस्तेमाल करने की
घी चुपड़ी रोटी खाने की
आभूषण पहनने की
नई पोषाक पहनने की
गांव के बीच से बारात निकालने की
कक्षा में प्रथम आने की
घोड़ी पर चढ़ कर जाने की
या इंसान को
इंसान की तरह
जीने की

पर खबरदार!अब मेरे समाज के हाथ में
भी चाबुक है शक्ति का
जो तुम्हारे दंभ को
चूर-चूर करने का
रखती है हौंसला।